Tuesday, September 14, 2010
पुलिस महकमे में भी है जहनी लोग......
आज चंद घंटो पहले विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन के पास कुछ ऐसा घटा जिसने पुलिस महकमे के बारे में मेरे पूर्वाग्रह को कम किया..........हुआ कुछ यों कि मै मेट्रो स्टेशन के बाहर मै अपनी बस का इंतज़ार कर रहा था.....कि एक दीवान साहब आये और बेहिचक अधिकार स्वरुप वे रेहडी से दालमोठ उठा-उठा खाने लगे....मजे कि बात यह कि दूकान वाला कुछ व्यक्तिगत कारणों से कुछ दूर गया था ( शायद उनको कुछ ज्यादा जोर कि ही भूक लगी थी.)......तभी एक दुसरे साहब आये ....उनकी नेम प्लेट पर प्रधान सिपाही लिखा हुआ था.......उन्होंने उन दीवान महाशय को जमकर लताड़ लगाई.....और नशीहत पेश देने लगे की आप लोगो के कारण ही हमारे महकमे कि इतनी तौहीन होती है.....शर्म आनी चाहिए.....(आगे चंद अनिवार्य पुलिसिया शब्द)....भई वहा खड़े सभी लोगो के लिए मुफ्त का मनोरंजन मिल गया था सो सारे बड़े चाव से सारा प्रकरण देख रहे थे.......खैर जो भी हो .....अब मै कह सकता हु कि पुलिस महकमे में भी जहनी लोग है......खैर इस सारे तमाशे के बीच मेरी कई बसे निकलती रही.... अंतत: कुछ देरी से मै घर पहुच सका.
Wednesday, March 17, 2010
माया की 'माया'
आज जब पूरा देश महंगाई की मार से कराह रहा है.दो जून की रोटी भी मुश्किल से जुटा पा रहा है.ऐसे में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती द्वारा नोटों की माला पहनना शर्मनाक है.देश की आम जनता को एक गाली है.देश का आबादी के हिसाब से सबसे बड़ा राज्य आज उद्योग-धंधो जैसे अनेक बुनियादी मोर्चों पर हासिये पर है.एक मुख्यमंत्री के रूप में मायावती द्वारा उस और कोई ध्यान ही दिया जा रहा है.लगता है धन के मद में मायावती ये भी भूल गयी है कि वो एक सम्वैधानिक पद पर है व उत्तर-प्रदेश कि अवाम के प्रति उनकी पूरी जवाबदेही है.एक और तो बरेली कि जनता दंगों के चलते दहशत में थी उस समय धन का ऐसा भौंडा प्रदर्शन पूरे लोकतंत्र पर तमाचा है.सारे राजनितिक दल इस बात से खासे खफा दीख पड़े व उनके द्वारा इसका विरोध जायज़ है.जहां मायावती अपने को दलित की बेटी बता समाज के दुर्बल वर्ग की सहानुभूति बटोरती रही है,लेकिन अब उनका असली रंग सामने आ रहा है.अपने इस कृत्य पर बजाय माफ़ी मांगने के वो भविष्य में भी ऐसा करने की हुंकार भर रही है.निश्चित रूप से अब लालबहादुर जी जैसे नेता ओझल हो गये है, लेकिन राजनीतिज्ञों में ऐसा नैतिक पतन शोचनीय है.केंद्र सरकार व महामहिम राष्ट्रपति जी से गुजारिश है कि वो इस मामले में हस्तक्षेप करें.
आज जब पूरा देश महंगाई की मार से कराह रहा है.दो जून की रोटी भी मुश्किल से जुटा पा रहा है.ऐसे में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती द्वारा नोटों की माला पहनना शर्मनाक है.देश की आम जनता को एक गाली है.देश का आबादी के हिसाब से सबसे बड़ा राज्य आज उद्योग-धंधो जैसे अनेक बुनियादी मोर्चों पर हासिये पर है.एक मुख्यमंत्री के रूप में मायावती द्वारा उस और कोई ध्यान ही दिया जा रहा है.लगता है धन के मद में मायावती ये भी भूल गयी है कि वो एक सम्वैधानिक पद पर है व उत्तर-प्रदेश कि अवाम के प्रति उनकी पूरी जवाबदेही है.एक और तो बरेली कि जनता दंगों के चलते दहशत में थी उस समय धन का ऐसा भौंडा प्रदर्शन पूरे लोकतंत्र पर तमाचा है.सारे राजनितिक दल इस बात से खासे खफा दीख पड़े व उनके द्वारा इसका विरोध जायज़ है.जहां मायावती अपने को दलित की बेटी बता समाज के दुर्बल वर्ग की सहानुभूति बटोरती रही है,लेकिन अब उनका असली रंग सामने आ रहा है.अपने इस कृत्य पर बजाय माफ़ी मांगने के वो भविष्य में भी ऐसा करने की हुंकार भर रही है.निश्चित रूप से अब लालबहादुर जी जैसे नेता ओझल हो गये है, लेकिन राजनीतिज्ञों में ऐसा नैतिक पतन शोचनीय है.केंद्र सरकार व महामहिम राष्ट्रपति जी से गुजारिश है कि वो इस मामले में हस्तक्षेप करें.
Monday, January 11, 2010
"युवा शक्ति - राष्ट्र शक्ति "

आधुनिक भारत के प्रणेता युगपुरुष स्वामी विवेकानंद जी को कोटि -कोटि प्रणाम.आज उनके जन्मदिवस पर हम सारे भारतवासी ह्रदय से उनको भारत निर्माण में अप्रतिम योगदान के लिए याद करते है.आज जब सब ओर से युवाओं को लेकर बात चल रही है.राजनीतिक पार्टियाँ युवाओ को मोहने में लगी हुई है.स्वामी विवेकानंद जी कि प्रासंगिकता और भी शिद्दत से महसूस कि जा रही है.चूंकि उन्होंने उस वक़्त युवाओं का आह्वान किया था जब अन्य लोगों को अनुभव ही सफलता का तकाजा लगता था.युवा मात्र बालकसुलभ कार्यों के लिए ही जाने जाते थे.राष्ट्रवाद,जन -जागरण,समाज -सुधार इत्यादि राष्ट्र निर्माण से जुड़े मुद्दों पर युवाओं को 'अनफिट' मान आजाता था.यद्यपि आज से एक शताब्दी पूर्व ऐसे दकियानूसी विचारों का विरोध करना आसान न था लेकिन विवेकानंद जी ने ऐसे रूढ़िवादियों का डटकर सामना किया.उन्होंने अपने तर्कों से उनकी बोलती बंद कर दी.शायद यही कुछ कारण थे जो उन्हें नरेन्द्रनाथ से स्वामी विवेकानंद तक ले गये.अपने समकालीनों से युवा सम्राट स्वामी विवेकानंद जी कहीं आगे मिलते है.आज भी अपने विचारों के माध्यम से हमारे दिलों में वास करते है.सन 1893 में शिकागो के धर्म सम्मेलन में विश्व पटल पर अपने पहले ही व्यक्तव्य से उन्होनें पूरी दुनिया को अचंभित कर दिया था.उन्हें भारत के धर्म-प्रतिनिधि के रूप में मात्र दो मिनट का वक़्त दिया गया था लेकिन उनके उनके शुरूआती शब्द "मेरे प्यारे भाई एवम बहनों................................"ने उपस्तिथ जनों का मन मोह लिया करीब पांच मिनट से अधिक वक़्त तक तालिया ही बजती रही,आखिरकार उनका वक़्त बढ़ाना पड़ा.इसके बाद तो विवेकानंद जी पूरे विश्व पर छा गए.विवेकानंद जी कि प्रतिभा के कायल उनके समकालीन भी रहे है.जिसमे महात्मा गाँधी,सुभाष चन्द्र बोस एवम अरविंदो घोष प्रमुख है.सुभाष जी के शब्दों में "विवेकानंद जी युवाओं के सच्चे मार्गदर्शक हो सकते है"।उनकी यह उक्ति आज सत्य साबित हो रही है.आज पूरे देश में जश्न का माहौल है.विवेकानंद जी द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन पूरे विश्व में मानव सेवा में सक्रीय है.इस रूप में विवेकानंद जी आज भी हमारे बीच मौजूद है.उनकी प्रासंगिकता अनवरत बढ़ ही रही है.भारत सरकार ने आज के इस मुबारक मौके पर "युवा- एक्सप्रेस " शुरू कर एक स्वश्थ्य परम्परा की नीव रखी है।जो स्वागत योग्य है.
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